Osho Give life to legislative march No
prohibitory escape Story in Hindi
जीवन से
अंधकार हटाना व्यर्थ है, क्योंकि अंधकार हटाया नहीं जा सकता. जो यह जानते हैं, वे अंधकार को नहीं हटाते, वरन् प्रकाश को जलाते हैं.
एक प्राचीन
लोककथा है, उस समय की जब मनुष्य के पास प्रकाश नहीं था, अग्नि नहीं थी. रात्रि तब बहुत कठोर थी. लोगों ने अंधकार को दूर करने के बहुत
उपाय सोचे, पर कोई भी कारगर नहीं हुआ. किसी ने कहा मंत्र पढ़ो तो मंत्र पढ़े गये
और किसी ने सुझाया कि प्रार्थना करो तो कोरे आकाश की ओर हाथ उठाकर प्रार्थनाएं की
गई. पर अंधकार न गया सो न गया.
किसी युवा
चिंतक और आविष्कारक ने अंतत: कहा, ”हम अंधकार को टोकरियों में भर-भरकर गड्ढों
में डाल दें. ऐसा करने से धीरे-धीरे अंधकार क्षीण होगा. और फिर उसका अंत भी आ सकता
है.”
यह बात बहुत
युक्तिपूर्ण मालूम हुई और लोग रात-रात भर अंधेरे को टोकरियों में भर-भरकर गड्ढों
में डालते, पर जब देखते तो पाते कि वहां तो कुछ भी नहीं है! ऐसा करते-करते लोग बहुत ऊब गये. लेकिन अंधकार को फेंकने ने एक प्रथा
का रूप ले लिया था और हर व्यक्ति प्रति रात्रि कम से कम एक
टोकरी अंधेरा तो जरूर ही फेंक आता था!
फिर कभी ऐसा
हुआ कि एक युवक किसी अप्सरा के प्रेम में पड़ गया
और उसका विवाह उस अप्सरा से हुआ. पहली ही रात बहू से घर के बढ़े सयानों ने अंधेरे
की एक टोकरी घाटी में फेंक आने को कहा. वह अप्सरा यह सुन बहुत हंसने लगी. उसने
किसी सफेद पदार्थ की बत्ती बनाई, एक मिट्टी के कटोरे में घी रखा और फिर
किन्हीं दो पत्थरों को टकराया. लोग चकित देखते रहे – आग पैदा हो गई थी, दीया जल रहा था और अंधेरा दूर हो गया था!
उस दिन से
फिर लोगों ने अंधेरा फेंकना छोड़ दिया, क्योंकि वे दिया जलाना सीख गये थे. लेकिन
जीवन के संबंध में हममें से अधिक अभी भी दीया जलाना नहीं जानते हैं. और, अंधकार से लड़ने में ही उस अवसर को गंवा
देते हैं,
जो कि अलौकिक प्रकाश
में परिणित हो सकता है.
प्रभु को
पाने की आकांक्षा से भरो, तो पाप अपने से छूट जाते हैं. और, पापों से ही लड़ते रहते हैं, वे उनमें ही और गहरे धंसते जाते हैं. जीवन
को विधायक आरोहण दो, निषेधात्मक पलायन नहीं. सफलता का स्वर्ण सूत्र यही है.
ओशो के
पत्रों के संकलन ‘पथ के प्रदीप’ से. प्रस्तुति – ओशो शैलेन्द्र.
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