Saturday 4 February 2017

Education Story in Hindi Shiksha se Bada Koi Dhan Nahi शिक्षा से बढ़कर कोई धन नहीं

Education Story in Hindi Shiksha se Bada Koi Dhan Nahi

Education Story in Hindi


एक थे राजा। उन्हें पशु-पक्षियों से बहुत प्यार था। वे पशु-पक्षियों से मिलने के लिए वन में जाते थे। हमेशा की तरह एक दिन राजा पशु-पक्षियों को देखने के लिए वन में गए। अचानक आसमान में बादल छा गए और तेज-तेज बारिश होने लगी। बारिश होने के कारण उन्हें ठीक से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। राजा रास्ता भटक गए। रास्ता दूंढते-ढूंढते किसी तरह राजा जंगल के किनारे पहुंच ही गए। भूख-प्यास और थकान से बेचैन राजा एक बड़े से पेड़ के नीचे बैठ गए। तभी राजा को उधर से आते हुए तीन बालक दिखाई दिए।


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राजा ने उन्हें प्यार से अपने पास बुलाया। बच्चों यहां आओ। मेरी बात सुनो। तीनों बालक हंसते-खेलते राजा के पास आ गए। तब राजा बोले- मुझे बहुत भूख और प्यास लगी है। क्या मुझे भोजन और पानी मिल सकता है। बालक बोले, पास में ही हमारा घर है। हम अभी जाकर आपके लिए भोजन और पानी लेकर आते हैं। आप बस थोड़ा-सा इंजतार कीजिए। तीनों बालक दौड़कर गए और राजा के लिए भोजन और पानी ले आए। राजा बालकों के व्यवहार से बहुत खुश हुए। वे बोले, प्यार बच्चों, तुमने मेरी भूख और प्यास मिटाई है। मैं तुम तीनों बालकों को इनाम के रूप में कुछ देना चाहता हूँ। बताओ तुम बालकों को क्या चाहिए।

थोड़ी देर सोचने के बाद एक बालक बोला, महाराज, क्या आप मुझे एक बड़ा सा बंगला और गाड़ी दे सकते हैं। राजा बोले, हां-हां क्यों नहीं। अगर तुम्हें ये ही चाहिए तो जरूर मिलेगा। अब तो बालक फूले न समाया। दूसरा बालक भी उछलते हुए बोला, मैं बहुत गरीब हूं। मुझे धन चाहिए। जिससे मैं भी अच्छा-अच्छा खा सकूं, अच्छे-अच्छे कपड़े पहन सकूं और खूब मस्ती करूं। राजा मुस्कराकर बोले, ठीक है बेटा, मैं तुम्हें बहुत सारा धन दूंगा। यह सुनकर दूसरा बालक खुशी से झूम उठा।

भला तीसरा बालक क्यों चुप रहता। वह भी बोला, महाराज। क्या आप मेरा सपना भी पूरा करेंगे। मुस्कराते हुए राजा ने बोला- क्यों नहीं, बोलो बेटा तुम्हारा क्या सपना है। तुम्हें भी धन-दौलत चाहिए। नहीं महाराज। मुझे धन-दौलत नहीं चाहिए। मेरा सपना है कि मैं पढ़-लिखकर विद्वान बनूं। क्या आप मेरे लिए कुछ कर सकते हैं। तीसरे बालक की बात सुनकर राजा बहुत खुश हुए। राजा ने उसके पढ़ने-लिखने की उचित व्यवस्था करवा दी। वह मेहनती बालक था। वह दिन-रात लगन से पढ़ता और कक्षा में पहला स्थान प्राप्त करता। इस तरह समय बीतता गया। वह पढ़-लिखकर विद्वान बन गया।

राजा ने उसे राज्य का मंत्री बना दिया। बुद्धीमान होने के कारण सभी लोग उसका आदर-सम्मान करने लगे। उधर जिस बालक ने राजा से बंगला और गाड़ी मांगी थी। अचानक बाढ़ आने से उसका सब कुछ पानी में बह गया। दूसरा बालक भी धन मिलने के बाद कोई काम नहीं करता था। बस दिनभर फिजूल खर्च करके धन को उड़ता और मौज-मस्ती करता था। लेकिन रखा धन भला कब तक चलता। एक समय आया कि उसका सारा धन समाप्त हो गया। वह फिर से गरीब हो गया। दोनों बालक उदास होकर अपने मित्र यानि मंत्री से मिलने राजा के दरबार में गए। 

वे दुखी होकर अपने मित्र से बोले, हमने राजा से इनाम मांगने में बहुत बड़ी भूल की। हमारा धन, बंगला, गाड़ी सब कुछ नष्ट हो गया। हमारे पास अब कुछ नहीं बचा है। मित्र ने समझाते हुए कहा, किसी के भी पास धन-दौलत हमेशा नहीं रहता। धन तो आता-जाता रहता है। सिर्फ शिक्षा है जो हमेशा हमारे पास रहती है। धन से नहीं बल्कि शिक्षा से ही हम धनवान बनते हैं। दोनों बालकों को अपनी गलती पर बहुत पछतावा हुआ। उन्होंने तय किया कि हम भी मेहनत और लगन से पढ़ाई करेंगे और अपने जीवन को सुखी बनाएंगे।


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