Thursday 23 February 2017

Leo Tolstoy Surat Coffee House Story in Hindi - सूरत का कॉफी हाउस

Leo Tolstoy Surat Coffee House Story in Hindi
Leo Tolstoy Surat Coffee House Story in Hindi


दुनिया में अनेक धर्मों और उनके मानने वालों की ईश्‍वर के बारे में अपनी-अपनी धारणाएं हैं। सबके अपने-अपने भगवान हैं और अपने भगवान को श्रेष्‍ठ साबित करने की एक होड़ सबमें मची हुई है। पर उस होड़ के परे जाकर क्‍या हमने कभी सोचा है कि भगवान क्‍या है? ‘वार एंड वीसऔर अन्‍ना करेनिनाजैसी महान कृतियों के लेखक लियो टॉल्‍सटॉय इस बारे में कुछ कह रहे हैं अपनी इस कहानी में। कहानी का घटनास्‍थल है भारत के सूरत शहर का एक कॉफी हाउस-


सूरत नगर में एक कहवाघर था, जहां अनेकानेक यात्री और विदेशी दुनियाभर से आते थे और विचारों का आदान-प्रदान करते थे। एक दिन वहां फारस का एक विद्वान आया। पूरी जिंदगी प्रथम कारणके बारे में चर्चा करते करते उसका दिमाग ही चल गया था। उसने यह सोचना शुरू कर दिया था कि सृष्टि को नियंत्रण में रखने वाली कोई उच्‍च सत्‍ता नहीं है। इस व्‍यक्ति के साथ एक अफ्रीकी गुलाम भी था, जिससे उसने पूछा- बताओ, क्‍या तुम्‍हारे ख्‍याल में भगवान है? गुलाम ने अपनी कमरबंद में से किसी देवता की लकड़ी की मूर्ति निकाली और बोला- यही है मेरा भगवान, जिसने जिंदगी भर मेरी रक्षा की है। गुलाम का जवाब सुनकर सभी चकरा गए। उनमें से एक ब्राह्मण था। वह गुलाम की ओर घूमा और बोला- ब्रह्म ही सच्‍चा भगवान है। एक यहूदी भी वहां बैठा था। उसका दावा था- इस्राइल वासियों का भगवान ही सच्‍चा भगवान है, वे ही उसकी चुनी हुई प्रजा हैं। एक कैथोलिक ने दावा किया- भगवान तक रोम के कैथोलिक चर्च द्वारा ही पहुंचा जा सकता है।

लेकिन तभी एक प्रोटेस्‍टेंट पादरी जो वहां मौजूद था, बोल उठा- केवल गॉस्‍पेल के अनुसार प्रभु की सेवा करने वाले प्रोटेस्‍टेंट ही बचेंगे। कहवाघर में बैठे एक तुर्क ने कहा- सच्‍चा धर्म मुहम्‍मद और उमर के अनुयायियों का ही है, अली के अनुयायियों का नहीं। हर कोई दलीलें रख रहा था और चिल्‍ला रहा था। केवल एक चीनी ही, जो कि कनफ्यूशियस का शिष्‍य था, कहवाघर के एक कोने में चुपचाप बैठा था और विवाद में हिस्‍सा नहीं ले रहा था। तब सभी लोग उस चीनी की ओर घूमे और उन्‍होंने उससे अपने विचार प्रकट करने को कहा।


कनफ्यूशियस के शिष्‍य उस चीनी ने अपनी आंखें बंद कर लीं और क्षण भर सोचता रहा। तब उसने आंखें खोलीं, अपने वस्‍त्र की चौड़ी आस्‍तीनों में से हाथ बाहर निकाले, हाथ को सीने पर बांधा और बड़े शांत स्‍वर में कहने लगा- मित्रगण, मुझे लगता है, लोगों का अहंकार ही धर्म के मामले में एक-दूसरे से सहमत नहीं होने देता। मैं आपको एक कहानी सुनाना चाहता हूं, जिससे ये बात साफ हो जाएगी।

मैं यहां चीन से एक अंग्रेजी स्‍टीमर से आया। यह स्‍टीमर दुनिया की सैर को निकला था। ताजा पानी लेने के लिए हम रुके और सुमात्रा द्वीप के पूर्वी किनारे पर उतरे, दोपहर का वक्‍त था। हममें से कुछ लोग समंदर के किनारे ही नारियल के कुंजों में जा बैठे। निकट ही एक गांव था। हम सब लोगों की राष्‍ट्रीयता भिन्‍न-भिन्‍न थी।

जब हम बैठे हुए थे, तो एक अंधा आदमी हमारे पास आया। बाद में हमें मालूम हुआ कि सूर्य की ओर लगातार देखते रहने के कारण उसकी आंखें चली गई थीं- वह जानना चाहता था कि सूर्य आखिर है क्‍या, ताकि वह उसके प्रकाश को पकड़ सके।

यह जानने के लिए ही वह सूर्य की ओर देखता रहा। परिणाम यही हुआ कि सूर्य की रोशनी से उसकी आंखें दुखने लगीं और वह अंधा हो गया।

तब उसने अपने आपसे कहा- सूर्य का प्रकाश द्रव नहीं है, क्‍योंकि यदि वह द्रव होता, तो इसे एक पात्र से दूसरे पात्र में उड़ेला जा सकता था, तब यह पानी और हवा की तरह चलता। यह आग भी नहीं है, क्‍योंकि अगर यह आग होता, तो पल भर में बुझ सकता था। यह कोई आत्‍मा भी नहीं है, क्‍योंकि आंखें इसे देख सकती हैं। यह कोई पदार्थ भी नहीं है, क्‍योंकि इसे हिलाया नहीं जा सकता। अत:, क्‍योंकि सूर्य का प्रकाश न द्रव है, न अग्नि है, न आत्‍मा है और न ही कोई पदार्थ, यह कुछ भी नहीं है।

यही था उसका तर्क। और, हमेशा सूर्य की ओर देखते रहने और उसके बारे में सोचते रहने के कारण वह अपनी आंखें और बुद्धि दोनों ही खो बैठा। और जब वह पूरी तरह अंधा हो गया, उसे पूरा विश्‍वास हो गया कि सूर्य का अस्तित्‍व ही नहीं है।

इस अंधे आदमी के साथ एक गुलाम भी था, उसने अपने स्‍वामी को नारियल कुंज में बैठाया और जमीन से एक नारियल उठाकर उसका दिया बनाने लगा। उसने नारियल के रेशों से एक बत्‍ती बनाई, गोले में से थोड़ा तेल निचोड़कर खोल में डाला और बत्‍ती को उसमें भिगो लिया।

जब गुलाम अपने काम में मस्‍त था, अंधे आदमी ने सांस भरी और उससे बोला- तो दास भाई, क्‍या मेरी बात सही नहीं थी, जब मैंने तुम्‍हें बताया था कि सूर्य का अस्तित्‍व ही नहीं है। क्‍या तुम्‍हें दिखाई नहीं देता कि अंधेरा कितना गहरा है? और लोग फिर भी कहते हैं कि सूर्य है.... अगर है, तो फिर यह क्‍या है?

मुझे मालूम नहीं है कि सूर्य क्‍या है- गुलाम ने कहा- मेरा उससे क्‍या लेना-देना ! पर मैं यह जानता हूं कि प्रकाश क्‍या है। यह देखिए, मैंने रात्रि के लिए एक दीया बनाया है, जिसकी मदद से मैं आपको देख सकता हूं।

तब गुलाम ने दिया उठाया और बोला- यह है मेरा सूर्य।

एक लंगड़ा आदमी, जो अपनी बैसाखियां लिए पास ही बैठा था, यह सुनकर हंस पड़ा- लगता है तुम सारी उमर नेत्रहीन ही र‍हे- उसने अंधे आदमी से कहा- और कभी नहीं जान पाए कि सूर्य क्‍या है। मैं तुम्‍हें बताता हूं कि यह क्‍या है। सूर्य आग का गोला है, जो हर रोज समंदर में से निकलता है और शाम के समय हर रोज हमारे ही द्वीप की पहाडि़यों के पीछे छुप जाता है। अगर तुम्‍हारी नजर होती तो तुमने भी देख लिया होता।

एक मछुआरा जो यह बातचीत सुन रहा था, बोला- बड़ी साफ बात है कि तुम अपने द्वीप से आगे कहीं नहीं गए हो। अगर तुम लंगड़े न होते और अगर तुम भी मेरी तरह नौका में कहीं दूर गए होते, तो तुम्‍हें पता चलता कि सूर्य हमारे द्वीप की पहाडि़यों के पीछे अस्‍त नहीं होता। वह जैसे हर रोज समंदर में से उदय होता है, वैसे ही हर रात समंदर में ही डूब जाता है।

तब एक भारतीय, जो हमारी ही पार्टी का था, यों बोल उठा- मुझे हैरानी हो रही है कि एक अक्‍लमंद आदमी ऐसी बेवकूफी की बातें कर रहा है। आग का कोई गोला पानी में डूबने पर बुझने से कैसे बच सकता है? सूर्य आग का गोला नहीं है। वह तो देव नाम की दैवीय श‍क्ति है, और वह अपने रथ में बैठकर स्‍वर्ण-पर्वत मेरू के चारों ओर चक्‍कर लगाता रहता है। कभी-कभी राहु और केतु नाम के राक्षसी नाग उस पर हमला कर देते हैं और उसे निगल जाते हैं, तब पृथ्‍वी पर अंधकार छा जाता है। तब हमारे पुजारी प्रार्थना करते हैं, ताकि देव का छुटकारा हो सके। तब यह छोड़ दिया जाता है। केवल आप जैसे अज्ञानी ही ऐसा सोच सकते हैं कि सूर्य केवल उनके देश के लिए ही चमकता है।

तब वहां उपस्थित एक मिस्री जहाज का मालिक बोलने लगा- नहीं, तुम भी गलत कह रहे हो। सूर्य दैवीय शक्ति नहीं है और भारत और स्‍वर्ण-पर्वत के चारों ओर ही नहीं घूमता। मैं कृष्‍ण सागर पर यात्राएं कर चुका हूं। अरब के तट के साथ-साथ भी गया हूं। मड-गास्‍कर और फिलिपींस तक हो आया हूं। सूर्य पूरी धरती को आलोकित करता है, केवल भारत को ही नहीं, यह केवल एक ही पर्वत के चक्‍कर नहीं काटता रहता, जबकि दूर पूरब में उगता है- जापान के द्वीपों से भी परे और दूर पश्चिम में डूब जाता है- इंग्‍लैंड के द्वीपों से भी आगे कहीं, इसलिए जापानी लोग अपने देश को निप्‍पनयानी उगते सूरज का देशकहते हैं। मुझे अच्‍छी तरह मालूम है, क्‍योंकि मैंने काफी दुनिया देखी है।

वह बोलता चला गया होता अगर हमारे जहाज के अंग्रेज मल्‍लाह ने उसे रोक न दिया होता। वह कहने लगा- दुनिया में और कोई ऐसा देश नहीं है, जहां के लोग सूर्य की गतिविधियों के बारे में इतना जानते हैं, जितना इंग्‍लैंड के लोग। इंग्‍लैंड में हर कोई जानता है कि सूर्य न तो कहीं उदय होता है, न ही अस्‍त। वह हर समय पृथ्‍वी के चारों ओर चक्‍कर लगाता रहता है। यह सही बात है, क्‍योंकि जहां कहीं भी हम गए, सुबह सूर्य निकलता और रात को डूबता दिखाई दिया- यहां की ही तरह।

तब एक अंग्रेज ने एक छड़ी ली और रेत पर वृत्‍त खींचकर समझाने का प्रयास किया कि कैसे सूर्य आसमान में चलता रहता है और पृथ्‍वी का चक्‍कर लगाता रहता है। पर वह ठीक तरह समझा नहीं पाया और फिर जहाज के चालक की ओर इशारा करते हुए बोला- वह ठीक तरह समझा सकता है।

चालक, जो काफी समझदार था, चुपचाप सुनता रहा था। अब सब लोग उसकी ओर मुड़ गए और वह बोला- आप सब लोग एक-दूसरे को बहका रहे हैं। आप सब धोखे में हैं। सूर्य पृथ्‍वी के चारों ओर नहीं, पृथ्‍वी सूर्य के चारों ओर घूमती है और चलते-चलते अपने चारों ओर भी घूमती है और चौबीस घंटों में सूर्य के आगे से पूरी घूम जाती है- केवल जापान, फिलीपींस, सुमात्रा ही नहीं, अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका तथा अन्‍य प्रदेश भी साथ घूमते हैं, सूर्य किसी एक पर्वत के लिए नहीं चमकता, न किसी एक द्वीप या सागर या केवल हमारी पृथ्‍वी के लिए ही। यह अन्‍य ग्रहों के लिए भी चमकता है।

आस्‍था के मामलों में भी- कनफ्यूशियस के शिष्‍य चीनी ने कहा- अहंकार ही है, जो लोगों के मन में दुराव पैदा करता है। जो बात सूर्य के संबंध में निकलती है, वही भगवान के मामले में सही है। हर आदमी अपना खुद का एक विशिष्‍ट भगवान बनाए रखना चाहता है- या ज्‍यादा से ज्‍यादा अपने देश के लिए हर राष्‍ट्र उस शक्ति को उस मंदिर में बंद कर लेना चाहता है।

क्‍या उस मंदिर से किसी भी अन्‍य मंदिर की तुलना की जा सकती है, जिसकी रचना भगवान ने खुद सभी धर्मों और आस्‍थाओं के मानने वालों को एक सूत्र में बांधने के लिए की है?

सभी मानवीय मंदिरों का निर्माण इसी मंदिर के अनुरूप हुआ है, जो कि भगवान की अपनी दुनिया है। हर मंदिर के सिंहद्वार होते हैं, गुंबज होते हैं, दीप होते हैं, मूर्तियां और चित्र होते हैं, भित्ति-लिपियां होती हैं, विधि-विधान-ग्रंथ होते हैं, प्रार्थनाएं होती हैं, वेदियां होती हैं और पुजारी होते हैं। पर कौन सा ऐसा मंदिर है, जिसमें समंदर जैसा फव्‍वारा है, आकाश जैसा गुंबज है, सूर्य-चंद्र और तारों जैसे दीप हैं और जीते-जागते, प्रेम करते मनुष्‍यों जैसी मूर्तियां हैं? भगवान द्वारा प्रदत्‍त खुशियों से बढ़कर उसकी अच्‍छाईयों के ग्रंथ और कहां हैं, जिन्‍हें आसानी से पढ़ा और समझा जा सके? मनुष्‍य के हृदय से बड़ी कौन-सी विधान-पुस्‍तक है? आत्‍म-बलिदान से बड़ी बलि क्‍या है? और अच्‍छे आदमी के हृदय से बड़ी कौन-सी वेदी है, जिस पर स्‍वयं भगवान भेंट स्‍वीकार करते हैं?

जितना ऊंचा आदमी का विचार भगवान के बारे में होगा, उतना ही बेहतर वह उसे समझ सकेगा। और जितनी अच्‍छी तरह वह उसे समझेगा, उतना ही उसके निकट वह होता जाएगा।

इसीलिए जो आदमी सूर्य की रोशनी को पूरे विश्‍व में फैला देखता है, उसे अंधविश्‍वासी को दोष नहीं देना चाहिए, न ही उससे घृणा करनी चाहिए कि वह अपनी मूर्ति में उस रोशनी की एक किरण देखता है। उसे नास्तिक से भी नफरत नहीं करनी चाहिए कि वह अंधा है और सूर्य को नहीं देख सकता। ये थे कनफ्यूशियस के शिष्‍य चीनी विद्वान के शब्‍द। कहवाघर में बैठे सभी लोग शांत और खामोश थे। फिर वे धर्म को लेकर नहीं झगड़े। न ही उन्‍होंने विवाद ही किया।


No comments:

Post a Comment