Sunday 26 February 2017

Leo Tolstoy Bear Hunting Story in Hindi - ध्रुवनिवासी रीछ का शिकार

Leo Tolstoy Bear Hunting Story in Hindi
Leo Tolstoy Bear Hunting Story in Hindi


हम एक दिन रीछ के शिकार को निकले। मेरे साथी ने एक रीछ पर गोली चलायी। वह गहरी नहीं लगी। रीछ भाग गया। बर्फ पर लहू के चिह्न बाकी रह गए।   हम एकत्र होकर यह विचार करने लगे कि तुरन्त पीछा करना चाहिए या दोतीन दिन ठहरकर उसके पीछे जाना चाहिए। किसानों से पूछने पर एक बूढा बोलातुरन्त पीछा करना ठीक नहीं, रीछ को टिक जाने दो। पांच दिन पीछे शायद वह मिल जाए। अभी पीछा करने पर तो वह डरकर भाग जायेगा।


इस पर एक दूसरा जवान बोलानहीं नहीं, हम आज ही रीछ को मार सकते हैं। वह बहुत मोटा है, दूर नहीं जा सकता। सूर्य अस्त होने से पहले कहीं न कहीं टिक जाएगा, नहीं तो मैं बर्फ पर चलने वाले जूते पहनकर ढूंढ निकालूंगा।


मेरा साथी तुरन्त रीछ का पीछा करना नहीं चाहता था, पर मैंने कहाझगड़ा करने से क्या मतलब। आप सब गांव को जाइए। मैं और दुगार (मेरे सेवक का नाम) रीछ का पीछा करते हैं। मिल गया तो वाहवाह! दिनभर और करना ही क्या है?


और सब तो गांव को चले गए, मैं और दुगार जंगल में रह गए। अब हम बन्दूकें संभालकर, कमर कस, रीछ के पीछे हो लिये।


रीछ का निशान दूर से दिखाई पड़ता था। प्रतीत होता था कि भागते समय कभी तो वह पेट तक बर्फ में धंस गया है, कभी बर्फ चीरकर निकला है। पहले पहले तो हम उसकी खोज के पीछे बड़ेबड़े वृक्षों के नीचे चलते रहे, परन्तु घना जंगल आ जाने पर दुगार बोलाअब यह राह छोड़ देनी चाहिए, वह यहीं कहीं बैठ गया है। धीरेधीरे चलो, ऐसा न हो कि डरकर भाग जाए।


हम राह छोड़कर बायीं ओर लौट पड़े। पांच सौ कदम जाने पर सामने वही चिह्न फिर दिखाई दिए। उसके पीछे चलतेचलते एक सड़क पर जा निकले। चिह्नों से जान पड़ता था कि रीछ गांव की ओर गया है।


दुगार्महाराज, सड़क पर खोज लगाने से अब कोई लाभ नहीं। वह गांव की ओर नहीं गया। आगे चलकर चिह्नों से पता लग जायेगा कि वह किस ओर गया है।


एक मील आगे जाने पर चिह्नों से ऐसा प्रकट होता था कि रीछ सड़क से जंगल की ओर नहीं, जंगल से सड़क की ओर आया है। उसकी उंगलियां सड़क की तरफ थीं। मैंने पूछा कि दुगार्, क्या यह कोई दूसरा रीछ है?


दुगार्नहीं, यह वही रीछ है, उसने धोखा दिया है। आगे चलकर दुगार का कहना सत्य निकला, क्योंकि रीछ दस कदम सड़क की ओर आकर फिर जंगल की ओर लौट गया था।


दुगार्अब हम उसे अवश्य मार लेंगे। आगे दलदल है, वह वहीं जाकर बैठ गया है, चलिए।


हम दोनों आगे बढ़े। कभी तो मैं किसी झाड़ी में फंस जाता था, बर्फ पर चलने का अभ्यास न होने के कारण कभी जूता पैर से निकल जाता था। पसीने से भीगकर मैंने कोट कंधे पर डाल लिया, लेकिन दुगार बड़ी फुर्ती से चला जा रहा था। दो मील चलकर हम झील के उस पार पहुंच गए।


दुगार्देखो, सुनसान झाड़ी पर चिड़ियां बोल रही हैं, रीछ वहीं है। चिड़िया रीछ की महक पा गई हैं।


हम वहां से हटकर आधा मील चले होंगे कि फिर रीछ का खुर दिखाई दिया। मुझे इतना पसीना आ गया कि मैंने साफा भी उतार दिया। दुगार को पसीना आ गया था।


दुगार्स्वामी, बहुत दौड़धूप की, अब जरा विश्राम कर लीजिए।


संध्या हो चली थी। हम जूते उतारकर धरती पर बैठ गए और भोजन करने लगे। भूख के मारे रोटी ऐसी अच्छी लगी कि मैं कुछ कह नहीं सकता। मैंने दुगार से पूछा कि गांव कितने दूर है?


दुगार्कोई आठ मील होगा, हम आज ही वहां पहुंच जायेंगे। आप कोट पहन लें, ऐसा न हो सर्दी लग जाए।


दुगार ने बर्फ ठीक करके उस पर कुछ झाड़ियां बिछाकर मेरे लिए बिछौना तैयार कर दिया। मैं ऐसा बेसुध सोया कि इसका ध्यान ही न रहा कि कहां हूं। जागकर देखता हूं कि एक बड़ा भारी दीवानखाना बना हुआ है, उसमें बहुत से उजलेचमकते हुए खम्भे लगे हुए है, उसकी छत तवे की तरह काली है, उसमें रंगदार अनन्त दीपक जगमगा रहे हैं। मैं चकित हो गया। परन्तु तुरन्त मुझे याद आई कि यह तो जंगल है, यहां दीवानखाना कहां? असल में श्वेत खम्भे तो बर्फ से ढके हुए वृक्ष थे, रंगदार दीपक उनकी पत्तियों में से चमकते हुए तारे थे।


बर्फ गिर रही थी, जंगल में सन्नाटा था। अचानक हमें किसी जानवर के दौड़ने की आहट मिली। हम समझे कि रीछ है, परन्तु पास जाने पर मालूम हुआ कि जंगली खरहा है। हम गांव की ओर चल दिए। बर्फ ने सारा जंगल श्वेत बना रखा था। वृक्षों की शाखाओं में से तारे चमकते और हमारा पीछा करते ऐसे दिखाई देते थे कि मानो सारा आकाश चलायमान हो रहा है।


जब हम गांव पहुंचे तो मेरा साथी सो गया था। मैंने उसे जगाकर सारा वृत्तांत कह सुनाया और जमींदार से अगले दिन के लिए शिकारी एकत्र करने को कहा। भोजन करके सो रहे। मैं इतना थक गया था कि यदि मेरा साथी मुझे न जगाता, तो मैं दोपहर तक सोया पड़ा रहता। जागकर मैंने देखा कि साथी वस्त्र पहने तैयार है और अपनी बन्दूक ठीक कर रहा है।


मैंदुगार कहां है?

साथीउसे गये देर हुई। वह कल के निशान पर शिकारियों को इकट्ठा करने गया है।


हम गांव के बाहर निकले। धुन्ध के मारे सूर्य दिखाई न पड़ता था! दो मील चलकर धुआं दिखाई पड़ा। समीप जाकर देखा कि शिकारी आलू भून रहे हैं और आपस में बातें करते जाते हैं। दुगार भी वहीं था। हमारे पहुंचने पर वे सब उठ खड़े हुए। रीछ को घेरने के लिए दुगार उन सबको लेकर जंगल की ओर चल दिया। हम भी उसके पीछे हो लिये। आधा मील चलने पर दुगार ने कहा कि अब कहीं बैठ जाना उचित है। मेरे बायीं ओर ऊंचे-ऊंचे वृक्ष थे। सामने मनुष्य के बराबर ऊंची बर्फ से ढँकी हुई घनी झाड़ियां थीं, इनके बीच से होकर एक पगडंडी सीधी वहां पहुंचती थी, जहां मैं खड़ा हुआ था। दायीं ओर साफ मैदान था। वहां मेरा साथी बैठ गया।


मैंने अपनी दोनों बन्दूकों को भलीभांति देखकर विचारा कि कहां खड़ा होना चाहिए। तीन कदम पीछे हटकर एक ऊंचा वृक्ष था। मैंने एक बन्दूक भरकर तो उसके सहारे खड़ी कर दी, दूसरी घोड़ा च़ाकर हाथ में ले ली। म्यान से तलवार निकालकर देख ही रहा था कि अचानक जंगल में से दुगार का शब्द सुनाई दिया—"वह उठा, वह उठा!" इस पर सब शिकारी बोल उठे, सारा जंगल गूंज पड़ा। मैं घात में था कि रीछ दिखाई पड़ा और मैंने तुरंत गोली छोड़ी।


अकस्मात बायीं ओर बर्फ पर कोई काली चीज दिखाई दी। मैंने गोली छोड़ी, परंतु खाली गई और रीछ भाग गया।
मुझे बड़ा शोक हुआ कि अब रीछ इधर नहीं आएगा। शायद साथी के हाथ लग जाए। मैंने फिर बन्दूक भर ली, इतने में एक शिकारी ने शोर मचाया—"यह है, यह है यहां आओ!"


मैंने देखा कि दुगार भागकर मेरे साथी के पास आया और रीछ को उंगली से दिखाने लगा। साथी ने निशाना लगाया। मैंने समझा, उसने मारा, परंतु वह गोली भी खाली गई, क्योंकि यदि रीछ गिर जाता तो साथी अवश्य उसके पीछे दौड़ता। वह दौड़ा नहीं, इससे मैंने जाना कि रीछ मरा नहीं।


हैं! क्या आपत्ति आयी, देखता हूं कि रीछ डरा हुआ अंधाधुन्ध भागा मेरी ओर आ रहा है। मैंने गोली मारी, परन्तु खाली गई। दूसरी छोड़ी, वह लगी तो सही, परन्तु रीछ गिरा नहीं। मैं दूसरी बन्दूक उठाना ही चाहता था कि उसने झपटकर मुझे दबा लिया और लगा मेरा मुंह नोंचने। जो कष्ट मुझे उस समय हो रहा था, मैं उसे वर्णन नहीं कर सकता। ऐसा प्रतीत होता था मानो कोई छुरियों से मेरा मुंह छील रहा है।


इतने में दुगार और साथी रीछ को मेरे ऊपर बैठा देखकर मेरी सहायता को दौड़े। रीछ उन्हें देख, डरकर भाग गया। सारांश यह कि मैं घायल हो गया, पर रीछ हाथ न आया और हमें खाली हाथ गांव लौटना पड़ा।


एक मास पीछे हम फिर उस रीछ को मारने के लिए गये, मैं फिर भी उसे न मार सका उसे दुगार ने मारा, वह बड़ा भारी रीछ था। उसकी खाल अब तक मेरे कमरे में बिछी हुई है।


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