Thursday 2 February 2017

Positive Thinking Stories in Hindi - समय को मन से स्वीकार करो

Positive Thinking Stories in Hindi

Positive Thinking Stories in Hindi - समय को मन से स्वीकार करो


हम सभी के जीवन में उतार-चढ़ाव बना ही रहता है। नकारात्मक पल हमें विचलित कर देते हैं, क्योंकि हम समय के उतार-चढ़ाव में खुद को संतुलित नहीं रख पाते। किसी विचारक ने कहा है- नकारात्मक पल हमेशा अपनी जगह पर बने नहीं रहते, लेकिन ऐसे समय में सकारात्मक सोच रखनेवाले लोग हमेशा अपनी जगह पर बने रहते हैं। इसलिए समय के मिजाज को मन से स्वीकार करने की आदत डालनी चाहिए। आइये, इस विषय को एक कहानी के माध्यम से समझने की कोशिश करते हैं।

Positive Thinking Stories in Hindi - समय को मन से स्वीकार करो

किसी शहर में एक सेठ रहता था। उसकी बड़ी फैक्ट्री थी, जिसमें बहुत से लोग काम करते थे। उस सेठ का एक विश्वसनीय मैनेजर था, जो वर्षों से उसके यहां काम कर रहा था। सेठ जी उस पर अटूट विश्वास करते थे और सेठ की गैर-हाजिरी में सारा काम भी वही देखता था। उस मैनेजर में एक बड़ी खासियत यह थी कि वह कभी भी गैर-हाजिर नहीं होता और अपने काम को बहुत अच्छे ढंग से करता।

एक दिन वह अचानक गैर-हाजिर हो गया। सेठ जी ने सोचा कि मैंने बहुत समय से उसका वेतन नहीं बढ़ाया, इसलिए शायद वह कहीं और दूसरा काम ढूंढने के लिए गया होगा। अगले दिन जब मैनेजर आया, तो सेठ ने उसके वेतन में दस प्रतिशत का इजाफा कर दिया। जब मैनेजर को बढ़ी हुई सैलेरी मिली, तो उसने कुछ भी नहीं कहा, चुपचाप पैसे लेकर चला गया और अपने काम में लग गया। फिर सब कुछ ठीक चलने लगा। कुछ महीनों बाद मैनेजर फिर से गैर-हाजिर हो गया।

Positive Thinking Stories in Hindi - समय को मन से स्वीकार करो

सेठ को इस बात पर बहुत गुस्सा आया कि मैंने मैनेजर का वेतन भी बढ़ा दिया और उसने धन्यवाद भी नहीं किया, अब मैं उसकी बढ़ी हुई सैलरी वापस काट लूंगा। अगले दिन जब मैनेजर जॉब पर आया, तो उसे दस प्रतिशत कम सैलरी मिली। यह देख कर भी मैनेजर ने कुछ नहीं कहा और चुपचाप वापस अपने काम में लग गया। यह देख सेठ को बहुत आर्श्चय हुआ। उसने मैनेजर को बुलाया और बोला, क्या बात है, तुम किसी बात पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं देते। जब तुम्हारी सैलरी बढ़ी, तब भी तुमने कुछ नहीं कहा और अब जब तुम्हारी वेतनवृद्धी वापस ली जा रही है, तब भी तुम चुप हो, ऐसा क्यों?

मैनेजर ने मुस्कराते हुए कहा- सेठ जी, दरअसल, पहली बार मैं उस दिन गैर-हाजिर हुआ था, जिस दिन मुझे बेटी हुई थी, जब आपने मुझे वेतन में बढ़ोतरी दी, तो मैंने सोचा कि यह बढ़ोतरी मेरी बेटी के लिए ही है, दूसरी बार मैं गैर-हाजिर तब हुआ, जब मेरी माता का देहांत हो गया, उसके बाद आपने मेरी बढ़ोतरी वापस ले ली, तो मुझे लगा कि मेरी माँ अब इस दुनिया में नहीं है, इसी कारण मुझे घटी हुई सैलरी मिली। मैनेजर की सकारत्मक सोच देख सेठजी उठे और उसे गले से लगा लिया और कहा, जिस कंपनी में तुम्हारे जैसे सकारात्मक सोच के लोग हों, जो हर परिस्थिति में कुछ अच्छा देखते हैं, वह कंपनी कभी भी किसी से पीछे नहीं रह सकती, यह कहते हुए सेठ जी ने और ज्यादा बढ़ी हुई सैलरी का चेक मैनेजर की ओर बढ़ा दिया।


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एक विचारक ने कहा है कि हर व्यक्ति किसी भी नकारात्मक परिस्थिति में अवसरों की तलाश करता है और इस कारण वह किसी भी परिस्थिति को संभालने की काबिलियत खुद में पैदा कर लेता है। यदि हम इस बात को समझ सके, तो जीवन का कोई भी रंग हमें विचलित नहीं कर सकेगा।

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